क्रिकेट को ‘जेंटलमेन गेम’ कहा जाता है, लेकिन हाल के वर्षों में फिक्सिंग के आरोपों ने इस खेल की साख पर गहरा सवाल खड़ा कर दिया है। ताजा मामला ECS ऑस्ट्रिया टी10 टूर्नामेंट का है, जहां टीम के खिलाड़ी करणबीर सिंह को कथित रूप से फिक्सिंग में शामिल होने के आरोप में सस्पेंड कर दिया गया है। इस खबर ने एक बार फिर से क्रिकेट के चाहने वालों को निराश किया है और खेल की शुद्धता पर गंभीर सवाल उठाए हैं।
इस घटना ने फिक्सिंग के गहरे नेटवर्क और इसके पीछे काम करने वाले ताकतवर लोगों की भूमिका को उजागर किया है। ‘फिक्सिंग अवेयरनेस’ की टीम लंबे समय से इस मुद्दे पर जागरूक करती रही है, यह दावा करते हुए कि फिक्सिंग जैसी गतिविधियों को बिना बड़े और प्रभावशाली लोगों के समर्थन के अंजाम तक नहीं पहुंचाया जा सकता। सवाल यह है कि जब भी फिक्सिंग के मामले सामने आते हैं, तब केवल खिलाड़ियों पर कार्रवाई क्यों होती है? उन शक्तिशाली लोगों के खिलाफ कब कार्रवाई होगी जो पर्दे के पीछे से इस खेल को अपने फायदे के लिए संचालित कर रहे हैं?
फिक्सिंग का मुद्दा केवल खेल की गरिमा तक सीमित नहीं है, यह करोड़ों प्रशंसकों की भावनाओं से भी जुड़ा है। जब भी कोई फिक्सिंग का मामला सामने आता है, खेल प्रेमियों का विश्वास टूटता है। यह समय है कि क्रिकेट बोर्ड और अंतरराष्ट्रीय एजेंसियां मिलकर खेल को इस कलंक से मुक्त करने के लिए कठोर कदम उठाएं।
जब तक फिक्सिंग के खिलाफ सख्त कार्रवाई नहीं की जाती, तब तक यह खेल संदेह के घेरे में रहेगा। प्रशंसकों का विश्वास बहाल करने के लिए यह जरूरी है कि केवल छोटे खिलाड़ियों पर नहीं, बल्कि इस नेटवर्क के बड़े और ताकतवर खिलाड़ियों पर भी शिकंजा कसा जाए।
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